Home
Karamnasa
Barnes and Noble
Karamnasa
Current price: $16.99
Barnes and Noble
Karamnasa
Current price: $16.99
Size: OS
Loading Inventory...
*Product information may vary - to confirm product availability, pricing, shipping and return information please contact Barnes and Noble
सीमा पर खड़े जवान भी हाड़ माँस के बने इंसान ही होते हैं, जिनमें हम समय बेसमय देवत्व का आरोपण करते हैं। इत्तेफाक से समाज जब साहित्य रचता है तो ये जवान सिर्फ नायक होते हैं, जहाँ ये दुश्मनों से लड़ते हैं, उनके छक्के छुड़ाते हैं, फिर न्योछावर हो जाते हैं उस माटी की सुरक्षा में जिससे अपना तन माँजते हुए यहाँ तक पहुँचे होते हैं। इस तरह उनकी निजी जिंदगी, संघर्ष, मानसिक अवस्थिति और वो द्वंद्व कहीं किनारे पर ही छूटा रह जाता है, इस इंतजार में कि कभी उस आम जिंदगी की तरफ भी कोई नजरें इनायत करेगा। पता नहीं क्यों समाज सिर्फ और सिर्फ शहादतों को खोजता है, सम्मानित करता है फिर मस्त हो जाता है। आम जिंदगी और साहित्य में फ़ौज में भर्ती होने वाले तमाम युवक, और उनका संघर्ष हाशिए पर ही रह जाता है। इस तरह जिनके संघर्षों को महत्तर स्थिति प्रदान की जाती है वो प्रशासक होते हैं, नेता होते हैं, या कुछ और भी। साहित्य जगत ने आईएएस, एसएससी के तैयारी में लगे युवकों के संघर्ष गाथा को बखूबी चित्रित किया है। किसानों की जिंदगी भी साहित्य सिनेमा का भाग रही है। पर एक सिपाही की जिंदगी, पता नहीं क्यों उपेक्षित सी रह जाती है! संघर्ष तो उसका भी होता है न! एक और बहुत ही मजेदार चीज जो है वो यह कि यत्र-तत्र बिखरे हुए यौन रोगों, गुप्त रोगों के इलाज के दावे करते प्रगट विज्ञापन, और पत्रिकाओं के खुले हुए पन्नों पर बिखरी हुई गुप्त समस्याओं का निदान। किसी भी तरह के यौन शिक्षा से मरहूम तरुण मन जब इन पन्नों पर, विज्ञापनों पर नजरें फेरता है तो तरह तरह के गुप्त जाले मन के अंदर जम जाते हैं। फिर मकड़ी की तरह उसका मन तमाम द्वंद्वों के मध्य उलझ कर रह जाता है। बेचारे हकीम साहब अपने विज्ञापन में किसी अबूझ से पते को दर्ज करके चले जाते हैं और साला मन जो है वहमों में उलझ जाता है। कथा का नायक आज का नहीं है। उस